बोझ बढ़ते हुये
झुकती जाती कमर
पड़ते घठ्ठे वही
खाल में।
है नया क्या
नये साल में !
खुशबू रोटी की
चूल्हे से नाराज है
दूर मुँह से
डकारों की आवाज है
ओढ़कर सिसकियाँ
सोतीं भूखें वही
झाँक
खाली पड़ी थाल में।
है नया क्या
नये साल में!
आश्वासन वही थोथे
आकाश के
मेघ झूठे गरजते हुये
आस के
दिन ब दिन
सूद पर सूद चढ़ता वही
दिन
घिसटते फटेहाल में।
है नया क्या
नये साल में!
बजती नेपथ्य में
चैन की बाँसुरी
खिलखिलाती हुईं
वृत्तियाँ आसुरी
छेंक कर ताल-तट
बैठे मछुये वही
मछली
फँसती हुई जाल में।
है नया क्या
नये साल में!
झुकती जाती कमर
पड़ते घठ्ठे वही
खाल में।
है नया क्या
नये साल में !
खुशबू रोटी की
चूल्हे से नाराज है
दूर मुँह से
डकारों की आवाज है
ओढ़कर सिसकियाँ
सोतीं भूखें वही
झाँक
खाली पड़ी थाल में।
है नया क्या
नये साल में!
आश्वासन वही थोथे
आकाश के
मेघ झूठे गरजते हुये
आस के
दिन ब दिन
सूद पर सूद चढ़ता वही
दिन
घिसटते फटेहाल में।
है नया क्या
नये साल में!
बजती नेपथ्य में
चैन की बाँसुरी
खिलखिलाती हुईं
वृत्तियाँ आसुरी
छेंक कर ताल-तट
बैठे मछुये वही
मछली
फँसती हुई जाल में।
है नया क्या
नये साल में!
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