रातइ लिखी लिलारे, हमरौ सबेर आवइ।
कुछ तौ नये वरिस मा यहरौ उँजेर आवइ।
दिन भै करी ज मेनहत भूखइ त न सोई हम
ना होय मन-पसेरी, सेरै-दु-सेर आवइ।
बा शोर साँड दउड़त बा खोब दलाल-पथ पै
चिरई विकास कै अब हमरेउ मुड़ेर आवइ।
कुर्सी मिली कि नेतन कै सात पुश्त बनि गै
इस्कीम कुछ त परजौ खातिर दुधेर आवइ।
ई का कि मोट फूलैं, निमराँय अउर, दूबर
आन्हीं जौ नीक दिन कै आवै, चफेर आवइ।
गीत-औ-ग़ज़ल के मद मा पावैं इनाम 'नन्दन'
अँन्हरे के हाथ शाइत एसौं बटेर आवइ।
कुछ तौ नये वरिस मा यहरौ उँजेर आवइ।
दिन भै करी ज मेनहत भूखइ त न सोई हम
ना होय मन-पसेरी, सेरै-दु-सेर आवइ।
बा शोर साँड दउड़त बा खोब दलाल-पथ पै
चिरई विकास कै अब हमरेउ मुड़ेर आवइ।
कुर्सी मिली कि नेतन कै सात पुश्त बनि गै
इस्कीम कुछ त परजौ खातिर दुधेर आवइ।
ई का कि मोट फूलैं, निमराँय अउर, दूबर
आन्हीं जौ नीक दिन कै आवै, चफेर आवइ।
गीत-औ-ग़ज़ल के मद मा पावैं इनाम 'नन्दन'
अँन्हरे के हाथ शाइत एसौं बटेर आवइ।