सोमवार, 23 जनवरी 2017

आह छिपानी भी है दर्द दिखाना भी

आह छिपानी भी है    दर्द दिखाना भी।
हाथ झटकना भी   संबंध निभाना भी।


तुम अपने हो,     खूब लाज़िमी है मेरा

तुमसे पतियाना भी   धोखे खाना भी।


हर सूरत  रखना   जीने में   सीरत यों

यां से जाना भी हो    यां रह जाना भी।


बीन  सरीखे बोल     जिंदगी के भी तो

नाच नचाना भी औ मन को भाना भी।


रुहानी हो इश्क कि दुनियावी 'नन्दन'

ख़ुद को खोना भी है उसको पाना भी।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

यहरौ उँजेर आवइ

रातइ  लिखी  लिलारे,   हमरौ  सबेर आवइ।
कुछ तौ  नये वरिस मा   यहरौ उँजेर आवइ।

दिन भै करी ज मेनहत भूखइ त न सोई हम

ना   होय    मन-पसेरी,  सेरै-दु-सेर   आवइ।

बा शोर साँड दउड़त बा खोब  दलाल-पथ पै

चिरई  विकास कै अब   हमरेउ मुड़ेर आवइ।

कुर्सी मिली कि  नेतन कै  सात पुश्त  बनि गै

इस्कीम  कुछ त परजौ खातिर  दुधेर आवइ।

ई का  कि  मोट फूलैं,  निमराँय अउर,  दूबर

आन्हीं जौ नीक दिन कै आवै, चफेर आवइ।

गीत-औ-ग़ज़ल के मद मा पावैं इनाम 'नन्दन'

अँन्हरे के  हाथ   शाइत   एसौं  बटेर  आवइ।



रविवार, 31 जनवरी 2016

अब नहीं वो खुशबुएँ त्यौहार में

खो गईं  सब ,  आपसी  तकरार में
अब    नहीं  वो खुशबुएँ ,  त्यौहार में।

बात  अच्छी, रह गई  बस  बात  भर
कब किया शामिल इसे, व्यवहार में।

बांग मुर्गे की, न  चिड़ियों की चहक
हो   कहाँ  से   ताजगी,  भिनसार में

कत्ल,   दंगे,   रेप,   घोटाले ,  गबन
अब  पढ़ोगे  और  क्या,  अखबार  में।

आज  तोड़ा,  कल हुआ था   प्यार जो
क्या  उलझना  मान    मनुहार  में।

स्वार्थ  की  किश्ती  बचाते  हम  फिरे
छोड़कर  नाते   सभी,   मझधार   में

एक दो   बच्चे,  मियांबीबी   फक़त
है  बचा  ही  कौन  अब,  परिवार  में।            

शनिवार, 30 जनवरी 2016

कुण्डलिया – एक

लल्लो–चप्पो  जो  करे,   वो  साहब का खास
पूजा  जिसने कर्म  को,    रहा  दास का  दास
रहा  दास  का  दास,  रखो  आले में  अक्कल
सारे  निर्णय  करो,  देख  साहब  की शक्कल
बैगन  के  गुण  छोड़,  शाह  की  माला जप्पो
त्याग कर्म  का  मोह करो  बस  लल्लो–चप्पो  ।।१।। 

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

है नया क्या नये साल में !


बोझ बढ़ते हुये
झुकती जाती कमर
पड़ते घठ्ठे वही
खाल में।

है नया क्या

नये साल में !

खुशबू रोटी की

चूल्हे से नाराज है
दूर मुँह से
डकारों की आवाज है

ओढ़कर सिसकियाँ

सोतीं भूखें वही
झाँक
खाली पड़ी थाल में।

है नया क्या

नये साल में!

आश्वासन वही थोथे

आकाश के
मेघ झूठे गरजते हुये
आस के

दिन ब दिन

सूद पर सूद चढ़ता वही
दिन
घिसटते फटेहाल में।

है नया क्या

नये साल में!

बजती नेपथ्य में

चैन की बाँसुरी
खिलखिलाती हुईं
वृत्तियाँ आसुरी

छेंक कर ताल-तट

बैठे मछुये वही
मछली
फँसती हुई जाल में।

है नया क्या

नये साल में!