गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

यहरौ उँजेर आवइ

रातइ  लिखी  लिलारे,   हमरौ  सबेर आवइ।
कुछ तौ  नये वरिस मा   यहरौ उँजेर आवइ।

दिन भै करी ज मेनहत भूखइ त न सोई हम

ना   होय    मन-पसेरी,  सेरै-दु-सेर   आवइ।

बा शोर साँड दउड़त बा खोब  दलाल-पथ पै

चिरई  विकास कै अब   हमरेउ मुड़ेर आवइ।

कुर्सी मिली कि  नेतन कै  सात पुश्त  बनि गै

इस्कीम  कुछ त परजौ खातिर  दुधेर आवइ।

ई का  कि  मोट फूलैं,  निमराँय अउर,  दूबर

आन्हीं जौ नीक दिन कै आवै, चफेर आवइ।

गीत-औ-ग़ज़ल के मद मा पावैं इनाम 'नन्दन'

अँन्हरे के  हाथ   शाइत   एसौं  बटेर  आवइ।